Sunday, July 3, 2011

गेंद और चाँद

मैंने तो गेंद समझकर उछाला था तुमको ,
क्या पता था कितुम चाँद बन जाओगे ?
अब तो सारा दिन तडपना है याद में तुम्हारी ,
और तुम रात में चुपके से मुस्कुराओगे ।

Sunday, May 22, 2011

मौत आएगी ज़रूर .....

किसी को प्यार कि सच्चाई मार डालेगी
किसी को दर्द कि गहराई मार डालेगी
बिछड़ कर मोहब्बत में कोई जी नहीं सकता
जो बच गया उसे तन्हाई मार डालेगी .....

यह मोहब्बत ........

यूँ बदल जाते हैं मौसम हमे मालूम न था
प्यार है प्यार का मातम हमे मालूम न था
इस मोहब्बत में यहाँ किसका भला होना है
हर मुलाकात कि किस्मत में जुदा होना है

Thursday, May 19, 2011

ऐसा नहीं है कि .....

कदम थक गए हैं इसलिए दूर निकलना छोड़ दिया
पर ऐसा नहीं है कि हमने चलना छोड़ दिया
फासले अक्सर मोहब्बत को बढ़ा देते हैं
पर ऐसा नहीं है कि हमने करीब आना छोड़ दिया
मैंने चिरागों से रोशन की हैं अक्सर अपनी राते
पर ऐसा नहीं है कि हमने दिल को जलाना छोड़ दिया है
दिख ही जाती है मायूसी मेरे दोस्तों को मेरे चेहरे पर
पर ऐसा नहीं है कि हमने मुस्कुराना छोड़ दिया ..............

Saturday, May 7, 2011

छोड़ दे

उससे कह दो मुझे अब सताना छोड़ दे
दूसरो के साथ रहकर हरपल मुझे जलाना छोड़ दे
या तो कर दे इनकार के मुझसे मोहब्बत है ही नहीं
या तो गुजरते हुए मुझे देखकर मुस्कुराना छोड़ दे
न करे बात मुझसे कोई ग़म नहीं है मुझे लेकिन
यूँ सुनकर आवाज़ मेरी झरोखे पे आना छोड़ दे
कर दे दिल-ऐ-बयां जो छुपा रखा है
यूँ इशारों में हाल बताना छोड़ दे
क्या इरादा है अब बता दे तू मुझको
यूँ दोस्तों को मेरे किस्से सुनना छोड़ दे
है पसंद सफ़ेद रंग मुझे बहुत
उस लिबास में बार बार आना छोड़ दे
न कर याद मुझे बेशक यू कोई गिला नहीं
पर किताबो में मेरा नाम लिखकर मिटाना छोड़ दे
खुदा कर सके अगर आसान ये किस्सा
या तू मेरी हो जा या मुझे अपना बताना छोड़ दे..........

Thursday, April 28, 2011

आदमी

लहरों के साथ डूबता उतरता है आदमी
अपनों के साथ रोता मुस्कुराता है आदमी
कभी खुद ही है रोता तो कभी
दूसरो को है रुलाता यह आदमी
एक दूजे के पास पास होकर भी
कितना दूर दूर है यह आदमी
फटे चिथड़ो में तन ढाके हुए खुद का
खुद को भेडियो से बचाता है आदमी
कभी खुद को अपनों के लिए बेचता तो
कभी दूसरो को अपने लिए खरीदता है आदमी
कभी रेत की ड्योढ़ी पर मायूस सा बैठा
तो कभी फासीपर लटका नज़र आता है आदमी........

Tuesday, April 26, 2011

तुम भी

कहना है तुमसे कितना कुछ
पर तुम कुछ सुनना भी तो चाहो
कितना कहता हूँ मैं तुमसे
पर तुम कुछ गुनना भी तो चाहो
कितनी यादो में मैं मुरझाया हूँ
अब तुम मुझको हर्षाना भी तो जानो
श्वेत हरित धरती से निकली
हरियाली को तुम भी तो पहचानो
मैंने तुमको अपना माना
तुम भी मुझको अपना मानो .............

Monday, April 25, 2011

याद

कभी सोचा नहीं था कि मैं इतना मुस्कुराऊँगा
कभी सोचा नहीं था कि उन्हें इतना याद आऊँगा
उन्हें याद आना है बेवफाई मेरी पर क्या करू
उन्हें याद आकर सारी रात मैं सताऊँगा
तैरूँगा रात भर मैं भी आंसूओं के समंदर में
सुबह उतर कर पार हो जाऊँगा
बस यादो के मौसम में कभी डूबकर यूँ ही
किसी अपने के पास चुपके से पहुँच जाऊँगा

Saturday, April 23, 2011

चाय

जितना मुश्किल था सवाल मेरा


उतना ही आसान आया जवाब उनका


ज़िन्दगी क्या है?


चाय की प्याली कपकपाते हाथो में लेकर


बच्चे सी मासूमियत से चुस्की ली


फिर पूपले मुह से तुतलाए


चाय ज़िन्दगी है


अटपटा सा जवाब लगा


पुछा कैसे भला


दूजी चुस्की के बात वह फिर तूत्लाये


चाय ज़िन्दगी है


ज़िन्दगी कडवाहट है चाय पट्टी की तरह


ज़िन्दगी मीठी है शक्कर की तरह


ज़िन्दगी हौले से जियोगे तो जी जाओगे


जल्दी जल्दी में जल जाओगे


करके अपनी तुत्लाई बातों से कायल मुझे


दुबारा लेने लगे चुस्की


एकदम आसान सी ज़िन्दगी की तरह


अब मुझे भी लग रही है


चाय की इच्छा


चाहस .................

सन्नाटा

यह कैसा सन्नाटा है जो कान फोड़ता है
यह सन्नाटा भी कितने सवाल बोलता है
इस सन्नाटे में कितनी आवाजें हैं
हर मोड़ पर भेडिये हैं तैयार झपटने को
यह सुहानी शाम का सन्नाटा है
या काली रात के बाद की उदास सुबह का सन्नाटा
यह फर्क अब मुश्किल है कर पाना
यह सन्नाटा ........................

Friday, March 18, 2011

होली

होली का त्यौहार है आया,
खुशियों की सौगात है लाया।
चुन्नू मुन्नू बाहर आओ,
सब लोगो को रंग लगाओ।
देखो किसी को भूल न जाना,
सबको तुम खुशियाँ दे जाना।
फगुआ आया नाचो गाओ,
पीला हरा गुलाल उड़ाओ।
रंग मलो चेहरे पर पहले,
फिर ज़ोरों से हंसो हंसाओ।
होली का त्यौहार है आया,
खुशियों की सौगात है लाया।

Sunday, March 13, 2011

सब कुछ झूठा सा लगता है

कभी कभी जब डिगता है विश्वास मेरा
जाने क्यों झूठा लगता है हर ख्वाब मेरा
धरती पर अम्बर झुकता है धीरे धीरे
जाने क्या कहता है रिसता है जब पानी नभ से
झूठी लगती है दरिया की वह धार मुझे
झूठा लगता है धरती का श्रिंगार मुझे
झूठा लगता है राधा का फिर प्यार मुझे
पथरायी, सूनी, अलसाई सी आँखों से
झर झर कर सपने सब मेरे गिरते हैं
सब कुछ झूठा सा लगता है
कभी कभी जब डिगता है विश्वास मेरा
जाने क्यों झूठा लगता है हर ख्वाब मेरा ।

Thursday, March 10, 2011

मातृत्व का एहसास

रोज़ की तरह
मैं आज भी जा रहा हूँ
अपने उसी रास्ते से,
जिस रास्ते पर बैठती है एक बढ़ी "माँ
उसकी झुर्रियों वाली गोदी में चिपका रहता था उसका "लाल",
अपने खुरदरे हाथो से
वह माँ रोज़ अपने लाडले को देती थी मातृत्व का स्पर्श
एहसास कराती थी उसे कि वह उसकी "माँ" है
अभी कल ही तो उसने छीना था एक अमरुद
उस ठेले वाले से जो रोज़ गुजरता था उधर से
उसने खुद नहीं खाया था उसे
बल्कि वार दिया था उस फल को अपने "लाल" पर
उसी पेड़ के नीचे जहाँ वह रोज़ होती थी
आज वहां पर पड़ा है उसका निर्जीव शरीर
और उसका "लाल" सहला रहा है उसके
उन्ही झुर्रीदार हाथो को
जिनसे वह रोज़ कराती थी अपने "लाल" को
मातृत्व का एहसास.............

और अचानक एक दिन

और अचानक एक दिन
तुम थी नहीं मेरे पास
सुबह हर रोज़ की तरह तुमने मुझे जगाया ही नहीं
कितना खोजा था मैंने तुमको
अपने बिस्तर की सिलवटों में
तुम्हारी कंघी में भी खोजा था
जिसमे तुम्हारे बाल फस गए थे
और तुमने झटक कर फेक दिया था दूर उसे
मैं नहीं जनता था एक दिन तुम झटक दोगी वैसे ही मुझको भी
मैंने तुमको बगीचे के फूलों में भी खोजा था
जिनको रंग और महक देने जाती थी तुम हर सुबह
तुम नहीं थी वहां भी
तुम चली गयीं मुझे छोड़ कर उस रोज़ चुपके से
सोचा भी नहीं क्या होगा मेरा
बस चली गयीं तुम यूँ ही
मंदिर की देवी की तरह पूजता हूँ आज भी तुम्हे हर पल
तुम्हारी तस्वीर पर रोज चढ़ाता हूँ ताजे फूल
उन पौधों के जिनको तुमने रोपा था मेरे आँगन में
यह कहकर की यह मह्कायेंगे हमारा जीवन
पर अब वह फूलों की डाली भी मुरझाने लगी है
हर रोज़ तुम्हारे आने की बाट जोहता है वह पौधा
जिसे तुमने रोपा था अपने हाथों से
और अचानक एक दिन .......

Monday, February 21, 2011

सुख

स्वछंद उड़ने का सुख
वही जान सकता है
जिसने नापा हो सारा आकाश
अपने खुले पंखो से
या फिर पाया हो जिसने
जीवन का अमृत सार
या जिया हो जिसने कभी भी
एक पल प्रेम में ....................

उपले

कभी कभी विचार इतना शक्तिशाली होता है कि शब्द उस विचार को पूरी तरह से कह पाने में असमर्थ होता है लेकिन फिर भी विचार स्वयं खुद को अर्थ दे जाता है ...........................

हम सब उपले हैं
हां, हम लोग सभी
इतिहास तले चुपचाप सुलगते रहते हैं
एक बार कभी कोई भूला
इतिहास कभी भी पलटे तो
आग लगा कर देखे तो हममे फिर वो
तब हम बोलेगे
हां हम लोग सभी
उपले कैसे होते हैं ?

Wednesday, February 9, 2011

नयी रुत

ज़िन्दगी के कोरे कागज़ पर,
आज नया फरमान लिखा।
खोयी खोयी रातो में जब,
सुबह को हमने शाम लिखा।
जाने क्यों हम रो बैठे हैं जब,
उनके न आने का पैगाम मिला।
लहर उठी एक मन में फिर से,
और तुम्हारा नाम लिखा।
ज़िन्दगी के कोरे कागज़ पर,
आज नया फरमान लिखा .........

Monday, February 7, 2011

बस दो पल

"मत कहो यूँ अब और"
कहकर तुमने मेरे लबों पर
अपनी उंगलियाँ रख दी थी
फिर पल भर पल के बाद
सहमकर हटा ली थीं तुमने अपनी उंगलियाँ
कहा कुछ भी नहीं था तब तुमने
और न ही मैंने
बस पहली बार दो पल के लिए
जिया था मैं .............

Sunday, February 6, 2011

सूरज का खेल

सूरज रोज़ नयी तय्यारी के साथ
पहाड़ के पीछे से उगता है रोज़
दिनभर खूब घूमता है,
खूब खेलता है
लुका छिप्पी उसका पसंदीदा खेल है
कभी पेड़ की आड़ में छिपता है
तो कभी बादल में जाकर खुदको गुमा देता है
सूरज कभी कभी नाराज़ भी हो जाता है
नाराज़गी में चमड़ी से पसीना निकल लेता है
बच्चे को भी रुला देता है
और बड़े को भी
सूरज दिनभर खूब खेलता है
थकने पर उसी पहाड़ के पीछे जा कर सो जाता है
जहाँ से सुबह आता है
फिर अगले दिन नयी तय्यारी के साथ आने के लिए ...............

एक शाम

शाम ढले यादो का मौसम
ले आया है याद तेरी
आज कोई फिर बात हुई है
आज तेरी फिर याद आई
कहते हैं जो याद न करना
क्या याद उन्हें भी है आई
हम तो समझा लेंगे दिलको
लेकिन तुम क्या समझाओगे
शाम ढले यादो का मौसम
ले आया है याद तेरी

Friday, February 4, 2011

चाँद की कटोरी लेकर के जब

चाँद की कटोरी लेकर के जब
रात हमारे घर आएगा
खुल के बिखरना बिखरके सजना
पास तुम्हे मेरे पाएगा
रूप तुम्हारा देखेगा जब
शरमाकर के छुप जायेगा
सूरज से किरने लाएगा
सारी किरणों को ऊपर से
हम दोनों पर बिखराएगा
चाँद कटोरी लेकरके जब
रात हमारे घर आएगा ।

Thursday, February 3, 2011

घाव

डूबने वाले नदी के घाट पर डूबा किये,
यह तमाशा हम कलम की नोक से देखा किये।
आपने पत्थर उछाला है शिकारों की तरफ ,
ज़िन्दगी भर घाव फूलो की तरह महका किये।

राजमुकुट

मैं राजा बनाना चाहता था
एकदम वैसा ही
जैसा मेरी माँ के पूजा घर में
टंगे कलेंडर में बना है एक राजा
चमकीले से कपडे का पहना है उसने राजमुकुट
मै भी पहनना चाहता था वैसा ही राजमुकुट
मैंने अपनी बहन के खिलोने के डिब्बे से
चुरा लिया था उसका चमकीला कपड़ा
और बनाया था उससे अपने लिए राजमुकुट
मैं भी लग रहा था एकदम वैसा ही राजा
जिसने पहन रखा था एक चमकीला सा राजमुकुट
जो किसी और के हिस्से के चिथड़ो का था।

एक पल

बहुत दिनों के बाद जब कोई लौटे अपना
और कुछ न कहे बस मुस्कुरा दे
जाने कितनी दूरियों की बर्फ को
बस पल भर में पिघला दे
ऐसा एहसास जो न था पहले कभी भी
उन सब तमन्नाओ को एक पल में जगा दे
बस वह एक पल मुझको मेरे खुदा
मेरी सारी उम्र के बदले में मुझको दिलादे

Tuesday, February 1, 2011

मीठा सपना

दो दिन की हाढ़ तोढ़ मेहनत के बाद
कल रात बहुत सुकून से सोया था
बड़ी नेमत है यह नींद भी
समझ में कल शाम को आया था
नींद में एक सपना सूख रहा था कब से
कल रात उसने खूब हँसाया था
बहुत गहरी नींद में कल रात
एक मीठा सा सपना आया था।

सूरज की खोज

रोज चढ़ता है उतरता है सूरज
जाने क्या खोजता रहता है सूरज
घर की मुंडेर पे सारा दिन
यूँ ही बेसबब टंगा रहता है सूरज
इतना बड़ा होकर भी जाने क्यों
पेड़ की परछाई से डरता है सूरज
मैंने पूछा जो लपक कर उस दिन
झट जा के कही दूर छुपा था सूरज
मैंने खोजा तो बहुत है उसको
मिलता ही नहीं है मुझको तबसे सूरज
कोई कहता है मुझे तबसे यू ही
शायद किसी मासूम से चेहरे में छुपा है सूरज
मैंने खोजा तो बहुत है उसको
क्या तुमने कही देखा है सूरज ?

मेरी खोज

कितना महफूज सा पता हूँ मैं खुद को तेरी निगाहों में
जैसे फ़रिश्ता पलता है खुदा की बाहों में
हौले से जगाना मेरे मन तू उसको
जैसे गुलाबी पंखुड़ी से ओस ढलक जाये
डरता हूँ मैं कितना बेसबब यू ही
जाने क्या खोजता हूँ पाता हूँ जाने क्या?