लहरों के साथ डूबता उतरता है आदमी
अपनों के साथ रोता मुस्कुराता है आदमी
कभी खुद ही है रोता तो कभी
दूसरो को है रुलाता यह आदमी
एक दूजे के पास पास होकर भी
कितना दूर दूर है यह आदमी
फटे चिथड़ो में तन ढाके हुए खुद का
खुद को भेडियो से बचाता है आदमी
कभी खुद को अपनों के लिए बेचता तो
कभी दूसरो को अपने लिए खरीदता है आदमी
कभी रेत की ड्योढ़ी पर मायूस सा बैठा
तो कभी फासीपर लटका नज़र आता है आदमी........
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