अंतर्मन
Sunday, July 3, 2011
गेंद और चाँद
मैंने तो गेंद समझकर उछाला था तुमको ,
क्या पता था कितुम चाँद बन जाओगे ?
अब तो सारा दिन तडपना है याद में तुम्हारी ,
और तुम रात में चुपके से मुस्कुराओगे ।
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