होली का त्यौहार है आया,
खुशियों की सौगात है लाया।
चुन्नू मुन्नू बाहर आओ,
सब लोगो को रंग लगाओ।
देखो किसी को भूल न जाना,
सबको तुम खुशियाँ दे जाना।
फगुआ आया नाचो गाओ,
पीला हरा गुलाल उड़ाओ।
रंग मलो चेहरे पर पहले,
फिर ज़ोरों से हंसो हंसाओ।
होली का त्यौहार है आया,
खुशियों की सौगात है लाया।
Friday, March 18, 2011
Sunday, March 13, 2011
सब कुछ झूठा सा लगता है
कभी कभी जब डिगता है विश्वास मेरा
जाने क्यों झूठा लगता है हर ख्वाब मेरा
धरती पर अम्बर झुकता है धीरे धीरे
जाने क्या कहता है रिसता है जब पानी नभ से
झूठी लगती है दरिया की वह धार मुझे
झूठा लगता है धरती का श्रिंगार मुझे
झूठा लगता है राधा का फिर प्यार मुझे
पथरायी, सूनी, अलसाई सी आँखों से
झर झर कर सपने सब मेरे गिरते हैं
सब कुछ झूठा सा लगता है
कभी कभी जब डिगता है विश्वास मेरा
जाने क्यों झूठा लगता है हर ख्वाब मेरा ।
जाने क्यों झूठा लगता है हर ख्वाब मेरा
धरती पर अम्बर झुकता है धीरे धीरे
जाने क्या कहता है रिसता है जब पानी नभ से
झूठी लगती है दरिया की वह धार मुझे
झूठा लगता है धरती का श्रिंगार मुझे
झूठा लगता है राधा का फिर प्यार मुझे
पथरायी, सूनी, अलसाई सी आँखों से
झर झर कर सपने सब मेरे गिरते हैं
सब कुछ झूठा सा लगता है
कभी कभी जब डिगता है विश्वास मेरा
जाने क्यों झूठा लगता है हर ख्वाब मेरा ।
Thursday, March 10, 2011
मातृत्व का एहसास
रोज़ की तरह
मैं आज भी जा रहा हूँ
अपने उसी रास्ते से,
जिस रास्ते पर बैठती है एक बढ़ी "माँ
उसकी झुर्रियों वाली गोदी में चिपका रहता था उसका "लाल",
अपने खुरदरे हाथो से
वह माँ रोज़ अपने लाडले को देती थी मातृत्व का स्पर्श
एहसास कराती थी उसे कि वह उसकी "माँ" है
अभी कल ही तो उसने छीना था एक अमरुद
उस ठेले वाले से जो रोज़ गुजरता था उधर से
उसने खुद नहीं खाया था उसे
बल्कि वार दिया था उस फल को अपने "लाल" पर
उसी पेड़ के नीचे जहाँ वह रोज़ होती थी
आज वहां पर पड़ा है उसका निर्जीव शरीर
और उसका "लाल" सहला रहा है उसके
उन्ही झुर्रीदार हाथो को
जिनसे वह रोज़ कराती थी अपने "लाल" को
मातृत्व का एहसास.............
मैं आज भी जा रहा हूँ
अपने उसी रास्ते से,
जिस रास्ते पर बैठती है एक बढ़ी "माँ
उसकी झुर्रियों वाली गोदी में चिपका रहता था उसका "लाल",
अपने खुरदरे हाथो से
वह माँ रोज़ अपने लाडले को देती थी मातृत्व का स्पर्श
एहसास कराती थी उसे कि वह उसकी "माँ" है
अभी कल ही तो उसने छीना था एक अमरुद
उस ठेले वाले से जो रोज़ गुजरता था उधर से
उसने खुद नहीं खाया था उसे
बल्कि वार दिया था उस फल को अपने "लाल" पर
उसी पेड़ के नीचे जहाँ वह रोज़ होती थी
आज वहां पर पड़ा है उसका निर्जीव शरीर
और उसका "लाल" सहला रहा है उसके
उन्ही झुर्रीदार हाथो को
जिनसे वह रोज़ कराती थी अपने "लाल" को
मातृत्व का एहसास.............
और अचानक एक दिन
और अचानक एक दिन
तुम थी नहीं मेरे पास
सुबह हर रोज़ की तरह तुमने मुझे जगाया ही नहीं
कितना खोजा था मैंने तुमको
अपने बिस्तर की सिलवटों में
तुम्हारी कंघी में भी खोजा था
जिसमे तुम्हारे बाल फस गए थे
और तुमने झटक कर फेक दिया था दूर उसे
मैं नहीं जनता था एक दिन तुम झटक दोगी वैसे ही मुझको भी
मैंने तुमको बगीचे के फूलों में भी खोजा था
जिनको रंग और महक देने जाती थी तुम हर सुबह
तुम नहीं थी वहां भी
तुम चली गयीं मुझे छोड़ कर उस रोज़ चुपके से
सोचा भी नहीं क्या होगा मेरा
बस चली गयीं तुम यूँ ही
मंदिर की देवी की तरह पूजता हूँ आज भी तुम्हे हर पल
तुम्हारी तस्वीर पर रोज चढ़ाता हूँ ताजे फूल
उन पौधों के जिनको तुमने रोपा था मेरे आँगन में
यह कहकर की यह मह्कायेंगे हमारा जीवन
पर अब वह फूलों की डाली भी मुरझाने लगी है
हर रोज़ तुम्हारे आने की बाट जोहता है वह पौधा
जिसे तुमने रोपा था अपने हाथों से
और अचानक एक दिन .......
तुम थी नहीं मेरे पास
सुबह हर रोज़ की तरह तुमने मुझे जगाया ही नहीं
कितना खोजा था मैंने तुमको
अपने बिस्तर की सिलवटों में
तुम्हारी कंघी में भी खोजा था
जिसमे तुम्हारे बाल फस गए थे
और तुमने झटक कर फेक दिया था दूर उसे
मैं नहीं जनता था एक दिन तुम झटक दोगी वैसे ही मुझको भी
मैंने तुमको बगीचे के फूलों में भी खोजा था
जिनको रंग और महक देने जाती थी तुम हर सुबह
तुम नहीं थी वहां भी
तुम चली गयीं मुझे छोड़ कर उस रोज़ चुपके से
सोचा भी नहीं क्या होगा मेरा
बस चली गयीं तुम यूँ ही
मंदिर की देवी की तरह पूजता हूँ आज भी तुम्हे हर पल
तुम्हारी तस्वीर पर रोज चढ़ाता हूँ ताजे फूल
उन पौधों के जिनको तुमने रोपा था मेरे आँगन में
यह कहकर की यह मह्कायेंगे हमारा जीवन
पर अब वह फूलों की डाली भी मुरझाने लगी है
हर रोज़ तुम्हारे आने की बाट जोहता है वह पौधा
जिसे तुमने रोपा था अपने हाथों से
और अचानक एक दिन .......
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