लहरों के साथ डूबता उतरता है आदमी
अपनों के साथ रोता मुस्कुराता है आदमी
कभी खुद ही है रोता तो कभी
दूसरो को है रुलाता यह आदमी
एक दूजे के पास पास होकर भी
कितना दूर दूर है यह आदमी
फटे चिथड़ो में तन ढाके हुए खुद का
खुद को भेडियो से बचाता है आदमी
कभी खुद को अपनों के लिए बेचता तो
कभी दूसरो को अपने लिए खरीदता है आदमी
कभी रेत की ड्योढ़ी पर मायूस सा बैठा
तो कभी फासीपर लटका नज़र आता है आदमी........
Thursday, April 28, 2011
Tuesday, April 26, 2011
तुम भी
कहना है तुमसे कितना कुछ
पर तुम कुछ सुनना भी तो चाहो
कितना कहता हूँ मैं तुमसे
पर तुम कुछ गुनना भी तो चाहो
कितनी यादो में मैं मुरझाया हूँ
अब तुम मुझको हर्षाना भी तो जानो
श्वेत हरित धरती से निकली
हरियाली को तुम भी तो पहचानो
मैंने तुमको अपना माना
तुम भी मुझको अपना मानो .............
पर तुम कुछ सुनना भी तो चाहो
कितना कहता हूँ मैं तुमसे
पर तुम कुछ गुनना भी तो चाहो
कितनी यादो में मैं मुरझाया हूँ
अब तुम मुझको हर्षाना भी तो जानो
श्वेत हरित धरती से निकली
हरियाली को तुम भी तो पहचानो
मैंने तुमको अपना माना
तुम भी मुझको अपना मानो .............
Monday, April 25, 2011
याद
कभी सोचा नहीं था कि मैं इतना मुस्कुराऊँगा
कभी सोचा नहीं था कि उन्हें इतना याद आऊँगा
उन्हें याद आना है बेवफाई मेरी पर क्या करू
उन्हें याद आकर सारी रात मैं सताऊँगा
तैरूँगा रात भर मैं भी आंसूओं के समंदर में
सुबह उतर कर पार हो जाऊँगा
बस यादो के मौसम में कभी डूबकर यूँ ही
किसी अपने के पास चुपके से पहुँच जाऊँगा
कभी सोचा नहीं था कि उन्हें इतना याद आऊँगा
उन्हें याद आना है बेवफाई मेरी पर क्या करू
उन्हें याद आकर सारी रात मैं सताऊँगा
तैरूँगा रात भर मैं भी आंसूओं के समंदर में
सुबह उतर कर पार हो जाऊँगा
बस यादो के मौसम में कभी डूबकर यूँ ही
किसी अपने के पास चुपके से पहुँच जाऊँगा
Saturday, April 23, 2011
चाय
जितना मुश्किल था सवाल मेरा
उतना ही आसान आया जवाब उनका
ज़िन्दगी क्या है?
चाय की प्याली कपकपाते हाथो में लेकर
बच्चे सी मासूमियत से चुस्की ली
फिर पूपले मुह से तुतलाए
चाय ज़िन्दगी है
अटपटा सा जवाब लगा
पुछा कैसे भला
दूजी चुस्की के बात वह फिर तूत्लाये
चाय ज़िन्दगी है
ज़िन्दगी कडवाहट है चाय पट्टी की तरह
ज़िन्दगी मीठी है शक्कर की तरह
ज़िन्दगी हौले से जियोगे तो जी जाओगे
जल्दी जल्दी में जल जाओगे
करके अपनी तुत्लाई बातों से कायल मुझे
दुबारा लेने लगे चुस्की
एकदम आसान सी ज़िन्दगी की तरह
अब मुझे भी लग रही है
चाय की इच्छा
चाहस .................
सन्नाटा
यह कैसा सन्नाटा है जो कान फोड़ता है
यह सन्नाटा भी कितने सवाल बोलता है
इस सन्नाटे में कितनी आवाजें हैं
हर मोड़ पर भेडिये हैं तैयार झपटने को
यह सुहानी शाम का सन्नाटा है
या काली रात के बाद की उदास सुबह का सन्नाटा
यह फर्क अब मुश्किल है कर पाना
यह सन्नाटा ........................
यह सन्नाटा भी कितने सवाल बोलता है
इस सन्नाटे में कितनी आवाजें हैं
हर मोड़ पर भेडिये हैं तैयार झपटने को
यह सुहानी शाम का सन्नाटा है
या काली रात के बाद की उदास सुबह का सन्नाटा
यह फर्क अब मुश्किल है कर पाना
यह सन्नाटा ........................
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