Saturday, April 23, 2011

सन्नाटा

यह कैसा सन्नाटा है जो कान फोड़ता है
यह सन्नाटा भी कितने सवाल बोलता है
इस सन्नाटे में कितनी आवाजें हैं
हर मोड़ पर भेडिये हैं तैयार झपटने को
यह सुहानी शाम का सन्नाटा है
या काली रात के बाद की उदास सुबह का सन्नाटा
यह फर्क अब मुश्किल है कर पाना
यह सन्नाटा ........................

1 comment:

  1. read some of your poems.
    very very good, Shanti Deep.
    write on

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