यह कैसा सन्नाटा है जो कान फोड़ता है
यह सन्नाटा भी कितने सवाल बोलता है
इस सन्नाटे में कितनी आवाजें हैं
हर मोड़ पर भेडिये हैं तैयार झपटने को
यह सुहानी शाम का सन्नाटा है
या काली रात के बाद की उदास सुबह का सन्नाटा
यह फर्क अब मुश्किल है कर पाना
यह सन्नाटा ........................
read some of your poems.
ReplyDeletevery very good, Shanti Deep.
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