Monday, February 21, 2011

सुख

स्वछंद उड़ने का सुख
वही जान सकता है
जिसने नापा हो सारा आकाश
अपने खुले पंखो से
या फिर पाया हो जिसने
जीवन का अमृत सार
या जिया हो जिसने कभी भी
एक पल प्रेम में ....................

उपले

कभी कभी विचार इतना शक्तिशाली होता है कि शब्द उस विचार को पूरी तरह से कह पाने में असमर्थ होता है लेकिन फिर भी विचार स्वयं खुद को अर्थ दे जाता है ...........................

हम सब उपले हैं
हां, हम लोग सभी
इतिहास तले चुपचाप सुलगते रहते हैं
एक बार कभी कोई भूला
इतिहास कभी भी पलटे तो
आग लगा कर देखे तो हममे फिर वो
तब हम बोलेगे
हां हम लोग सभी
उपले कैसे होते हैं ?

Wednesday, February 9, 2011

नयी रुत

ज़िन्दगी के कोरे कागज़ पर,
आज नया फरमान लिखा।
खोयी खोयी रातो में जब,
सुबह को हमने शाम लिखा।
जाने क्यों हम रो बैठे हैं जब,
उनके न आने का पैगाम मिला।
लहर उठी एक मन में फिर से,
और तुम्हारा नाम लिखा।
ज़िन्दगी के कोरे कागज़ पर,
आज नया फरमान लिखा .........

Monday, February 7, 2011

बस दो पल

"मत कहो यूँ अब और"
कहकर तुमने मेरे लबों पर
अपनी उंगलियाँ रख दी थी
फिर पल भर पल के बाद
सहमकर हटा ली थीं तुमने अपनी उंगलियाँ
कहा कुछ भी नहीं था तब तुमने
और न ही मैंने
बस पहली बार दो पल के लिए
जिया था मैं .............

Sunday, February 6, 2011

सूरज का खेल

सूरज रोज़ नयी तय्यारी के साथ
पहाड़ के पीछे से उगता है रोज़
दिनभर खूब घूमता है,
खूब खेलता है
लुका छिप्पी उसका पसंदीदा खेल है
कभी पेड़ की आड़ में छिपता है
तो कभी बादल में जाकर खुदको गुमा देता है
सूरज कभी कभी नाराज़ भी हो जाता है
नाराज़गी में चमड़ी से पसीना निकल लेता है
बच्चे को भी रुला देता है
और बड़े को भी
सूरज दिनभर खूब खेलता है
थकने पर उसी पहाड़ के पीछे जा कर सो जाता है
जहाँ से सुबह आता है
फिर अगले दिन नयी तय्यारी के साथ आने के लिए ...............

एक शाम

शाम ढले यादो का मौसम
ले आया है याद तेरी
आज कोई फिर बात हुई है
आज तेरी फिर याद आई
कहते हैं जो याद न करना
क्या याद उन्हें भी है आई
हम तो समझा लेंगे दिलको
लेकिन तुम क्या समझाओगे
शाम ढले यादो का मौसम
ले आया है याद तेरी

Friday, February 4, 2011

चाँद की कटोरी लेकर के जब

चाँद की कटोरी लेकर के जब
रात हमारे घर आएगा
खुल के बिखरना बिखरके सजना
पास तुम्हे मेरे पाएगा
रूप तुम्हारा देखेगा जब
शरमाकर के छुप जायेगा
सूरज से किरने लाएगा
सारी किरणों को ऊपर से
हम दोनों पर बिखराएगा
चाँद कटोरी लेकरके जब
रात हमारे घर आएगा ।

Thursday, February 3, 2011

घाव

डूबने वाले नदी के घाट पर डूबा किये,
यह तमाशा हम कलम की नोक से देखा किये।
आपने पत्थर उछाला है शिकारों की तरफ ,
ज़िन्दगी भर घाव फूलो की तरह महका किये।

राजमुकुट

मैं राजा बनाना चाहता था
एकदम वैसा ही
जैसा मेरी माँ के पूजा घर में
टंगे कलेंडर में बना है एक राजा
चमकीले से कपडे का पहना है उसने राजमुकुट
मै भी पहनना चाहता था वैसा ही राजमुकुट
मैंने अपनी बहन के खिलोने के डिब्बे से
चुरा लिया था उसका चमकीला कपड़ा
और बनाया था उससे अपने लिए राजमुकुट
मैं भी लग रहा था एकदम वैसा ही राजा
जिसने पहन रखा था एक चमकीला सा राजमुकुट
जो किसी और के हिस्से के चिथड़ो का था।

एक पल

बहुत दिनों के बाद जब कोई लौटे अपना
और कुछ न कहे बस मुस्कुरा दे
जाने कितनी दूरियों की बर्फ को
बस पल भर में पिघला दे
ऐसा एहसास जो न था पहले कभी भी
उन सब तमन्नाओ को एक पल में जगा दे
बस वह एक पल मुझको मेरे खुदा
मेरी सारी उम्र के बदले में मुझको दिलादे

Tuesday, February 1, 2011

मीठा सपना

दो दिन की हाढ़ तोढ़ मेहनत के बाद
कल रात बहुत सुकून से सोया था
बड़ी नेमत है यह नींद भी
समझ में कल शाम को आया था
नींद में एक सपना सूख रहा था कब से
कल रात उसने खूब हँसाया था
बहुत गहरी नींद में कल रात
एक मीठा सा सपना आया था।

सूरज की खोज

रोज चढ़ता है उतरता है सूरज
जाने क्या खोजता रहता है सूरज
घर की मुंडेर पे सारा दिन
यूँ ही बेसबब टंगा रहता है सूरज
इतना बड़ा होकर भी जाने क्यों
पेड़ की परछाई से डरता है सूरज
मैंने पूछा जो लपक कर उस दिन
झट जा के कही दूर छुपा था सूरज
मैंने खोजा तो बहुत है उसको
मिलता ही नहीं है मुझको तबसे सूरज
कोई कहता है मुझे तबसे यू ही
शायद किसी मासूम से चेहरे में छुपा है सूरज
मैंने खोजा तो बहुत है उसको
क्या तुमने कही देखा है सूरज ?

मेरी खोज

कितना महफूज सा पता हूँ मैं खुद को तेरी निगाहों में
जैसे फ़रिश्ता पलता है खुदा की बाहों में
हौले से जगाना मेरे मन तू उसको
जैसे गुलाबी पंखुड़ी से ओस ढलक जाये
डरता हूँ मैं कितना बेसबब यू ही
जाने क्या खोजता हूँ पाता हूँ जाने क्या?