स्वछंद उड़ने का सुख
वही जान सकता है
जिसने नापा हो सारा आकाश
अपने खुले पंखो से
या फिर पाया हो जिसने
जीवन का अमृत सार
या जिया हो जिसने कभी भी
एक पल प्रेम में ....................
Monday, February 21, 2011
उपले
कभी कभी विचार इतना शक्तिशाली होता है कि शब्द उस विचार को पूरी तरह से कह पाने में असमर्थ होता है लेकिन फिर भी विचार स्वयं खुद को अर्थ दे जाता है ...........................
हम सब उपले हैं
हां, हम लोग सभी
इतिहास तले चुपचाप सुलगते रहते हैं
एक बार कभी कोई भूला
इतिहास कभी भी पलटे तो
आग लगा कर देखे तो हममे फिर वो
तब हम बोलेगे
हां हम लोग सभी
उपले कैसे होते हैं ?
हम सब उपले हैं
हां, हम लोग सभी
इतिहास तले चुपचाप सुलगते रहते हैं
एक बार कभी कोई भूला
इतिहास कभी भी पलटे तो
आग लगा कर देखे तो हममे फिर वो
तब हम बोलेगे
हां हम लोग सभी
उपले कैसे होते हैं ?
Wednesday, February 9, 2011
नयी रुत
ज़िन्दगी के कोरे कागज़ पर,
आज नया फरमान लिखा।
खोयी खोयी रातो में जब,
सुबह को हमने शाम लिखा।
जाने क्यों हम रो बैठे हैं जब,
उनके न आने का पैगाम मिला।
लहर उठी एक मन में फिर से,
और तुम्हारा नाम लिखा।
ज़िन्दगी के कोरे कागज़ पर,
आज नया फरमान लिखा .........
आज नया फरमान लिखा।
खोयी खोयी रातो में जब,
सुबह को हमने शाम लिखा।
जाने क्यों हम रो बैठे हैं जब,
उनके न आने का पैगाम मिला।
लहर उठी एक मन में फिर से,
और तुम्हारा नाम लिखा।
ज़िन्दगी के कोरे कागज़ पर,
आज नया फरमान लिखा .........
Monday, February 7, 2011
बस दो पल
"मत कहो यूँ अब और"
कहकर तुमने मेरे लबों पर
अपनी उंगलियाँ रख दी थी
फिर पल भर पल के बाद
सहमकर हटा ली थीं तुमने अपनी उंगलियाँ
कहा कुछ भी नहीं था तब तुमने
और न ही मैंने
बस पहली बार दो पल के लिए
जिया था मैं .............
कहकर तुमने मेरे लबों पर
अपनी उंगलियाँ रख दी थी
फिर पल भर पल के बाद
सहमकर हटा ली थीं तुमने अपनी उंगलियाँ
कहा कुछ भी नहीं था तब तुमने
और न ही मैंने
बस पहली बार दो पल के लिए
जिया था मैं .............
Sunday, February 6, 2011
सूरज का खेल
सूरज रोज़ नयी तय्यारी के साथ
पहाड़ के पीछे से उगता है रोज़
दिनभर खूब घूमता है,
खूब खेलता है
लुका छिप्पी उसका पसंदीदा खेल है
कभी पेड़ की आड़ में छिपता है
तो कभी बादल में जाकर खुदको गुमा देता है
सूरज कभी कभी नाराज़ भी हो जाता है
नाराज़गी में चमड़ी से पसीना निकल लेता है
बच्चे को भी रुला देता है
और बड़े को भी
सूरज दिनभर खूब खेलता है
थकने पर उसी पहाड़ के पीछे जा कर सो जाता है
जहाँ से सुबह आता है
फिर अगले दिन नयी तय्यारी के साथ आने के लिए ...............
पहाड़ के पीछे से उगता है रोज़
दिनभर खूब घूमता है,
खूब खेलता है
लुका छिप्पी उसका पसंदीदा खेल है
कभी पेड़ की आड़ में छिपता है
तो कभी बादल में जाकर खुदको गुमा देता है
सूरज कभी कभी नाराज़ भी हो जाता है
नाराज़गी में चमड़ी से पसीना निकल लेता है
बच्चे को भी रुला देता है
और बड़े को भी
सूरज दिनभर खूब खेलता है
थकने पर उसी पहाड़ के पीछे जा कर सो जाता है
जहाँ से सुबह आता है
फिर अगले दिन नयी तय्यारी के साथ आने के लिए ...............
एक शाम
शाम ढले यादो का मौसम
ले आया है याद तेरी
आज कोई फिर बात हुई है
आज तेरी फिर याद आई
कहते हैं जो याद न करना
क्या याद उन्हें भी है आई
हम तो समझा लेंगे दिलको
लेकिन तुम क्या समझाओगे
शाम ढले यादो का मौसम
ले आया है याद तेरी
ले आया है याद तेरी
आज कोई फिर बात हुई है
आज तेरी फिर याद आई
कहते हैं जो याद न करना
क्या याद उन्हें भी है आई
हम तो समझा लेंगे दिलको
लेकिन तुम क्या समझाओगे
शाम ढले यादो का मौसम
ले आया है याद तेरी
Friday, February 4, 2011
चाँद की कटोरी लेकर के जब
चाँद की कटोरी लेकर के जब
रात हमारे घर आएगा
खुल के बिखरना बिखरके सजना
पास तुम्हे मेरे पाएगा
रूप तुम्हारा देखेगा जब
शरमाकर के छुप जायेगा
सूरज से किरने लाएगा
सारी किरणों को ऊपर से
हम दोनों पर बिखराएगा
चाँद कटोरी लेकरके जब
रात हमारे घर आएगा ।
रात हमारे घर आएगा
खुल के बिखरना बिखरके सजना
पास तुम्हे मेरे पाएगा
रूप तुम्हारा देखेगा जब
शरमाकर के छुप जायेगा
सूरज से किरने लाएगा
सारी किरणों को ऊपर से
हम दोनों पर बिखराएगा
चाँद कटोरी लेकरके जब
रात हमारे घर आएगा ।
Thursday, February 3, 2011
घाव
डूबने वाले नदी के घाट पर डूबा किये,
यह तमाशा हम कलम की नोक से देखा किये।
आपने पत्थर उछाला है शिकारों की तरफ ,
ज़िन्दगी भर घाव फूलो की तरह महका किये।
यह तमाशा हम कलम की नोक से देखा किये।
आपने पत्थर उछाला है शिकारों की तरफ ,
ज़िन्दगी भर घाव फूलो की तरह महका किये।
राजमुकुट
मैं राजा बनाना चाहता था
एकदम वैसा ही
जैसा मेरी माँ के पूजा घर में
टंगे कलेंडर में बना है एक राजा
चमकीले से कपडे का पहना है उसने राजमुकुट
मै भी पहनना चाहता था वैसा ही राजमुकुट
मैंने अपनी बहन के खिलोने के डिब्बे से
चुरा लिया था उसका चमकीला कपड़ा
और बनाया था उससे अपने लिए राजमुकुट
मैं भी लग रहा था एकदम वैसा ही राजा
जिसने पहन रखा था एक चमकीला सा राजमुकुट
जो किसी और के हिस्से के चिथड़ो का था।
एकदम वैसा ही
जैसा मेरी माँ के पूजा घर में
टंगे कलेंडर में बना है एक राजा
चमकीले से कपडे का पहना है उसने राजमुकुट
मै भी पहनना चाहता था वैसा ही राजमुकुट
मैंने अपनी बहन के खिलोने के डिब्बे से
चुरा लिया था उसका चमकीला कपड़ा
और बनाया था उससे अपने लिए राजमुकुट
मैं भी लग रहा था एकदम वैसा ही राजा
जिसने पहन रखा था एक चमकीला सा राजमुकुट
जो किसी और के हिस्से के चिथड़ो का था।
एक पल
बहुत दिनों के बाद जब कोई लौटे अपना
और कुछ न कहे बस मुस्कुरा दे
जाने कितनी दूरियों की बर्फ को
बस पल भर में पिघला दे
ऐसा एहसास जो न था पहले कभी भी
उन सब तमन्नाओ को एक पल में जगा दे
बस वह एक पल मुझको मेरे खुदा
मेरी सारी उम्र के बदले में मुझको दिलादे
और कुछ न कहे बस मुस्कुरा दे
जाने कितनी दूरियों की बर्फ को
बस पल भर में पिघला दे
ऐसा एहसास जो न था पहले कभी भी
उन सब तमन्नाओ को एक पल में जगा दे
बस वह एक पल मुझको मेरे खुदा
मेरी सारी उम्र के बदले में मुझको दिलादे
Tuesday, February 1, 2011
मीठा सपना
दो दिन की हाढ़ तोढ़ मेहनत के बाद
कल रात बहुत सुकून से सोया था
बड़ी नेमत है यह नींद भी
समझ में कल शाम को आया था
नींद में एक सपना सूख रहा था कब से
कल रात उसने खूब हँसाया था
बहुत गहरी नींद में कल रात
एक मीठा सा सपना आया था।
कल रात बहुत सुकून से सोया था
बड़ी नेमत है यह नींद भी
समझ में कल शाम को आया था
नींद में एक सपना सूख रहा था कब से
कल रात उसने खूब हँसाया था
बहुत गहरी नींद में कल रात
एक मीठा सा सपना आया था।
सूरज की खोज
रोज चढ़ता है उतरता है सूरज
जाने क्या खोजता रहता है सूरज
घर की मुंडेर पे सारा दिन
यूँ ही बेसबब टंगा रहता है सूरज
इतना बड़ा होकर भी जाने क्यों
पेड़ की परछाई से डरता है सूरज
मैंने पूछा जो लपक कर उस दिन
झट जा के कही दूर छुपा था सूरज
मैंने खोजा तो बहुत है उसको
मिलता ही नहीं है मुझको तबसे सूरज
कोई कहता है मुझे तबसे यू ही
शायद किसी मासूम से चेहरे में छुपा है सूरज
मैंने खोजा तो बहुत है उसको
क्या तुमने कही देखा है सूरज ?
जाने क्या खोजता रहता है सूरज
घर की मुंडेर पे सारा दिन
यूँ ही बेसबब टंगा रहता है सूरज
इतना बड़ा होकर भी जाने क्यों
पेड़ की परछाई से डरता है सूरज
मैंने पूछा जो लपक कर उस दिन
झट जा के कही दूर छुपा था सूरज
मैंने खोजा तो बहुत है उसको
मिलता ही नहीं है मुझको तबसे सूरज
कोई कहता है मुझे तबसे यू ही
शायद किसी मासूम से चेहरे में छुपा है सूरज
मैंने खोजा तो बहुत है उसको
क्या तुमने कही देखा है सूरज ?
मेरी खोज
कितना महफूज सा पता हूँ मैं खुद को तेरी निगाहों में
जैसे फ़रिश्ता पलता है खुदा की बाहों में
हौले से जगाना मेरे मन तू उसको
जैसे गुलाबी पंखुड़ी से ओस ढलक जाये
डरता हूँ मैं कितना बेसबब यू ही
जाने क्या खोजता हूँ पाता हूँ जाने क्या?
जैसे फ़रिश्ता पलता है खुदा की बाहों में
हौले से जगाना मेरे मन तू उसको
जैसे गुलाबी पंखुड़ी से ओस ढलक जाये
डरता हूँ मैं कितना बेसबब यू ही
जाने क्या खोजता हूँ पाता हूँ जाने क्या?
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