Saturday, May 7, 2011

छोड़ दे

उससे कह दो मुझे अब सताना छोड़ दे
दूसरो के साथ रहकर हरपल मुझे जलाना छोड़ दे
या तो कर दे इनकार के मुझसे मोहब्बत है ही नहीं
या तो गुजरते हुए मुझे देखकर मुस्कुराना छोड़ दे
न करे बात मुझसे कोई ग़म नहीं है मुझे लेकिन
यूँ सुनकर आवाज़ मेरी झरोखे पे आना छोड़ दे
कर दे दिल-ऐ-बयां जो छुपा रखा है
यूँ इशारों में हाल बताना छोड़ दे
क्या इरादा है अब बता दे तू मुझको
यूँ दोस्तों को मेरे किस्से सुनना छोड़ दे
है पसंद सफ़ेद रंग मुझे बहुत
उस लिबास में बार बार आना छोड़ दे
न कर याद मुझे बेशक यू कोई गिला नहीं
पर किताबो में मेरा नाम लिखकर मिटाना छोड़ दे
खुदा कर सके अगर आसान ये किस्सा
या तू मेरी हो जा या मुझे अपना बताना छोड़ दे..........

2 comments:

  1. kya likhte ho bhai....
    appki is kavita me hai bahut sacchai
    hum to un hi kahenge
    mehfil me kayamat aayi

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