Sunday, March 13, 2011

सब कुछ झूठा सा लगता है

कभी कभी जब डिगता है विश्वास मेरा
जाने क्यों झूठा लगता है हर ख्वाब मेरा
धरती पर अम्बर झुकता है धीरे धीरे
जाने क्या कहता है रिसता है जब पानी नभ से
झूठी लगती है दरिया की वह धार मुझे
झूठा लगता है धरती का श्रिंगार मुझे
झूठा लगता है राधा का फिर प्यार मुझे
पथरायी, सूनी, अलसाई सी आँखों से
झर झर कर सपने सब मेरे गिरते हैं
सब कुछ झूठा सा लगता है
कभी कभी जब डिगता है विश्वास मेरा
जाने क्यों झूठा लगता है हर ख्वाब मेरा ।

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