कभी कभी जब डिगता है विश्वास मेरा
जाने क्यों झूठा लगता है हर ख्वाब मेरा
धरती पर अम्बर झुकता है धीरे धीरे
जाने क्या कहता है रिसता है जब पानी नभ से
झूठी लगती है दरिया की वह धार मुझे
झूठा लगता है धरती का श्रिंगार मुझे
झूठा लगता है राधा का फिर प्यार मुझे
पथरायी, सूनी, अलसाई सी आँखों से
झर झर कर सपने सब मेरे गिरते हैं
सब कुछ झूठा सा लगता है
कभी कभी जब डिगता है विश्वास मेरा
जाने क्यों झूठा लगता है हर ख्वाब मेरा ।
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